काश मै उस दिन मर गया होता ।
तो आज मुझे इतना दुख न होता॥
हां वो होटल 'ताज' था ।
मुंबई शहर का 'साज' था॥
शुरू किया खेल शैतानों ने।
निर्दोषों को मारा हैवानों ने॥
इंसान थे कि शैतान थे वे।
या नर्क से आए हैवान थे वे॥
बंदूकें गोली उगल रही थी।
जनता गोली निगल रही थी॥
मेरे सामने मारा मेरी दो बहनों को,
न रहा मैं लायक और दुख सहने को।
काश मै उस दिन मर गया होता ।
तो आज मुझे इतना दुख न होता॥
मार दिया मेरे तात को।
और न छोड़ा मेरी 'मात‘ को ॥
हथगोलों से मारा मेरे 'भातृ‘ को।
सो न सका मै महीनों रात को ॥
हे भगवान मुझे माफ मत करना ।
दुबारा ऐसी रात मत करना ॥
अब न सोता न जागता हूं ।
आदमी से भागता हूँ ॥
काश मै उस दिन मर गया होता ।
तो आज मुझे इतना दुख न होता॥
बच्चे भूख से तड़प रहे थे।
हैवान पिस्ता काजू गटक रहे थे॥
जब दी मैंने अपने भाई केा आग ।
लगा मेरे सीने में दाग ॥
गुड़ियों से खेलने वाली बहनें।
पड़ी थी सफेद चादर पहने॥
चारों तरफ करुणा रुदन था।
ताज बना श्मशान था॥
हे ईश्वर मुझे माफ मत करना ।
दुबारा ऐसी रात मत करना ॥
काश मै उस दिन मर गया होता ।
तो आज मुझे इतना दुख न होता॥
A-Gyani ji
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